रविवार, 11 जुलाई 2010

बहरूपिया होगा

आदमी की शक्ल में बह्रूप्या होगा ।
आईने का सामना जिसने किया होगा ।
जी रहा है जो यहाँ खामोशियाँ लेकर,
वह अकेले में बहुत चीखा किया होगा ।
रेट की दीवार थी जो उम्र ढह गई ,
शख्स ने इस पर यकीं कितना किया होगा ।
एक दीवाना था वो या सिरफिरा कोई ,
जिन्दगी भर का जहर जिसने पिया होगा ।
बेसबब यूँ ही कोई मंदिर नहीं जाता ,
रूह को उसने अबस मैला किया होगा ।
बाद मरने के खुली आँखें रहीं उसकी ,
चैन से न उम्र भर सोया किया होगा ।
एक शायर ने गजल उस पर कही होगी ,
दर्द सह कर भी न उफ़ जिसने किया होगा .

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