रविवार, 11 जुलाई 2010

चले जाना

तबस्सुम होंठ पर गम के संवर जाए चले जाना ।
मिलन की चांदनी मनम्पर पसर जाए चले जाना ।
उदासी के समुन्दर में उठा तूफ़ान अश्कों का ,
उछलती यादों की कश्ती ठहर जाए चले जाना ।
बदलते करवटें बीतीं कई रातें जुदाई में ,
मधुमयी नींद आँखों में उतर जाए चले जाना ।
अभी दो चार लम्हे भी नहीं बीते मुहब्बत के ,
गले लग कर उमर सारी गुजर जाए चले जाना ।
तुम्हारी याद आई तो ख्यालों में तुम्हें पाया ,
हकीकत में भी एक तस्वीर उभर जाए चले जाना ।
महक संदल की जोतेरे बदन से एक फैली है ,
फिजाओं में भी ये खुशबू बिखर जाए चले जाना .

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