रविवार, 4 जुलाई 2010

कारावास

उसके बिना जिन्दगी मेरी लगती कारावास है ।
खुशियों के भी बीच हमेशा रहती बड़ी उदास है ।
उसके मेरे बीच सैकड़ों मीलों की लम्बाई है ,
इतनी दूरी होने पर भी लगती दिल के पास है ।
उसके दिल की धड़कन मुझको निकट सुनाई देती है ,
और हरारत का भी मुझको होता अब अहसास है ।
जब भी उसकी याद सताती पलकें नम हो जातीं हैं ,
वह आएगा वापिस इकदिन मुझको ये विश्वासहै ।
धीरे -धीरे जाने कितने साल गुजरते जाते हैं ,
फिर भी दिल उम्मीद लिए इक ,होता नहीं निराश है ।
चारों ओर बराबर मेरे भीड़ बड़ी है लोंगों की ,
लेकिन इनमें नहीं मिला वो जिसकी मुझे तलाश है ।
मैं तो केवल पत्थर भर हूँ मेरा कोई मोल नहीं,
मुझे बना देगा मूरत वह बढ़िया संग तराश है .

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