रविवार, 4 जुलाई 2010

खुले हुए बालों में

कितनी सुन्दर लगती हो तुम खुले हुए बालों में ।
भंवर सरीखे डिम्पल पड़ते हैं गोरे गालों में ।
नजर उठाकर धीरे से जब मुझे देखती हो ,
खो जाता हूँ मैं कितने ही हंसी ख्यालों में ।
जब कभी गुलाबी होंठों से तुम रस टपकाती हो ,
मानों मरहम लग जाता है दिल के छालों में ।
मोती जैसे दांत चमकते जब भी हंसती हो ,
घिर जाता हूँ मानों किन्हीं तेज उजालों में ।
कभी -कभी जब देह तुम्हारी मदिरा बन जाती है ,
तब जी भर के पीता हूँ मैं मय मद भरे प्यालों में ।
तेरा मेरा रिश्ता क्या है पूछ रही है दुनिया ,
उलझ के रह जाता हूँ में इन कठिन सवालों में .

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