मंगलवार, 6 जुलाई 2010

ख़त

मेरे पास तुम्हारे भेजे हुए सभी ख़त हैं ।
इन्हें रखा महफूज समझकर अपनी दौलत हैं ।
जब भी चाह पढ़ लेता हूँ दिन में कई कई बार ,
और इन्हें पढ़कर करता महसूस तुम्हारा प्यार ,
बिना पढ़े इनको आता न मुझे जरा भी चैन ,
फिर -फिर पढना इनको बन गई मेरी आदत हैं ।
अगर तुम्हारी याद सताती मैं रो लेता हूँ ,
और अतीत की पगडण्डी के संग हो लेता हूँ ,
चलते -चलते दूर तलक जब भी थक जाता हूँ ,
तभी अचानक बन जाते ये मेरी ताकत हैं ।
शाम ढले यादें आतीं हैं तन्हाई में जब ,
साड़ी रात नहीं सोने देतीं मुझको या रब ,
गुजर गई है रात सुबह का पता तभी चलता है ,
मेरे दिल को बहला कर जब होती ये रुखसत हैं ।
आज तुम्हारी नजरों में कुछ इनका मोल नहीं ,
शायद तुमने समझा ये अब सकते बोल नहीं ,
लेकिन मेरे जीवन में अहमियत बड़ी इनकी ,
तुम मानो ना मनो अब ये मेरी इज्जत हैं .

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