सोमवार, 5 जुलाई 2010

सब का सब तय है

भला बुरा सब का सब तय है ।
फिर भी मन को लगता भय है ।
वक्त हमेशा आता जाता ,
जिसकी अपनी ही इक लय है ।
सबका अपना अपना मकसद ,
हर मकसद का भी आशय है ।
रंग मंच है सारी दुनिया ,
सबका निर्धारित अभिनय है।
किरदारों में सभी लिप्त हैं ,
यही सभी का बस परिचय है ।
जो आया है वह जाएगा ,
हर वस्तु का होता क्षय है ।
प्यार हमेशा रहने वाला ,
नहीं जरा इसमें संशय है ।
बार बार मन घबराता है ,
हर पल बदल रहा निश्चय है ।
कोई जीता नहीं यहाँ पर ,
गर हारा नहीं पराजय है .

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