रविवार, 11 जुलाई 2010

किसी से क्या कहना

अपने दिल की बात किसी से क्या कहना ।
बुरे भले हालात किसी से क्या कहना ।
रुसवाई का जहर पी गए हंस हंस कर ,
बन गए हम सुकरात किसी से क्या कहना ।
खुशियों के दिन चार चांदनी दो दिन की ,
फिर अंधियारी रात किसी से क्या कहना ।
अश्क मुहब्बत प्यार शजर जज्बातों के ,
सूखे सारे पात किसी से क्या कहना ।
आंसू बन गए लफ्ज गजल के अल्फाजों में ,
दर्द भरे नगमात किसी से क्या कहना ।
तकलीफों का जिक्र जुबां पर लाते -लाते ,
झेल गए आघात किसी से क्या कहना ।
लेने वाले लाभ प्यार के आरक्षण का ,
अपनी अपनी जात किसी क्या कहना .

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें