बुधवार, 7 जुलाई 2010

आजमाना चाहता हूँ

जिन्दगी को आजमाना चाहता हूँ ।
पंख अपने फडफडाना चाहता हूँ ।
ये हकीकत है अँधेरा सामने है ,
रौशनी सा फ़ैल जाना चाहता हूँ ।
सुर में सुर अपना मिला दे वक्त खुद ही ,
गीत ऐसा गुनगुनाना चाहता हूँ
राह काँटों से भरी है दूर तक यूँ ,
फूल की चादर बिछाना चाहता हूँ ।
साथ कोई दे न दे इकला चलूँगा ,
हमसफ़र खुद को बनाना चाहता हूँ ।
हर सड़क सीधी नहीं जाती कहीं पर ,
सीध में मंजिल बनाना चाहता हूँ .

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