रविवार, 11 जुलाई 2010

सर से उतर गया

भला हुआ जो नशा प्यार का सर से उतर गया ।
आने वाला इक झोंका था आया गुजर गया ।
इश्क के दरिया में भंवरें थीं गहरी दर गहरी ,
वह तो किस्मत अच्छी थी साहिल पर ठहर गया ।
मैंने खाबों की सुन्दर सी दुनियां थी रच डाली ,
लेकिन सच ने ठोकर मारी सब कुछ बिखर गया ।
चाँद सितारों की जानिब मैं उड़ने वाला था ,
अरमानों के पंख मुकद्दर चुप से क़तर गया ।
चोट मुहब्बत में खाने पर इतना पता चला ,
जितना दर्द दबाया दिल का उतना उभर गया ।
पलक बिछाए रहता कबतक मैं उस रस्ते पर ,
जाने वाला फिर न लौटा जिस पर उधर गया .

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